कितनी हसीं थी मेरी ज़िन्दगी. गुड पेइंग जॉब, गुड पोझिशन, अकेला जी रहा था मस्त. मेरी कई गर्लफ्रेंडस थी जिनके साथ मैं किसी भी कमिटमेंट के बिना जी रहा था, कई तो यहाँ,  मेरे घर में भी आती, कुछ दिनों के लिए. उन्हें भी बिना किसी इन्वोल्वमेंट की जिन्दगी चाहिए थी. 

और एक दिन मेरी उससे मुलाकात हुई जिसे मैंने कभी देखा तक नहीं था. और क्यूँ देखता? या मिलने की उम्मीद करता? अब ज्यादा पहेलिया नहीं बुझाता, बता ही देता हूँ मैं किसकी बात कर रहा था…

हुआ यूँ कि जैसे हर शनिवार मैं देर रात तक दोस्तों के साथ पार्टी मनाता था,  इस शनिवार को भी खूब मजे किये. शराब, शबाब और मैं. और क्या चाहिए? रात को घर लौटते ही दो बज गए. कोई नयी बात थोड़े ही थी? वो तो हर शनिवार को बजते थे घर वापस आने में. शुरुआत तो दुसरे दिन सुबह को हुई…

मुझे ऐसा लगा के डोअरबेल बजी. पहले तो लगा नींद में सुनाई दी होगी. फिर और एक बार जरा जोर से बजी. अब तो वाकई में कोई था दरवाजे पर. एक तो रात को देरी से लौटा था,  फिर शराब का हंगोवर भी सवार था. कौन आया होगा सुबह-सुबह/ मैं चीड़ सा गया.

 “कौन हैं भाई इतनी सुबह?”  मैंने अन्दर से ही पुछा. कोई आवाज़ नहीं आयी. 
“ये क्या बात हुई…बेल बजाता हैं और जवाब भी नहीं देता…”
अपनी तकदीर को कोसते हुए मैंने दरवाजा खोला, तो सामने एक महाशय खड़े थे जिन्हें मैं नहीं जानता था.

“कौन हैं भाई आप और क्यूँ आये हैं इस वक्त?” मैंने पुछा.
लेकिन तब तक वो मेरी बगल से घर के अंदर आ चूका था! अरे? क्या अजीब इंसान हैं ये? मैं हैरत मैं पड़ गया… और ये तो सोफे पे विराजमान हुआ था!”

“ओ मेरे भाई, तुम कौन हो, कहा से आये हो और मुझे पूछे बगैर ही अंदर आये और बैठ भी गए?” 
“लो! मैं इतनी दूर से आया हूँ तुम्हारे लिए… और तुम हो के पूछ रहे हो क्यूँ” उसने कहा.
“मेरे लिए आये हो? मजाक छोडो और फुट लो यहाँ से”.
“मैं तुम्हे दर्द के दो चम्मच पिलाने आया हूँ…” उसने अपना इरादा बता दिया…
“क्या क्या क्या? दर्द के दो क्या कहा तुमने? तुम्हे मेरा घर क्या पोलियो डोस का सेंटर लगता हैं?” 
“अब मजाक तुम कर रहे हो” 
“और नहीं तो क्या? तुम कोई सेल्समन हो ? कुछ बेचने आये हो ? देखो, मेरे पास टाइम भी नहीं है और पैसे भी… “
“इतने उतावले क्यूँ होते हो ? बताता हूँ… आओ, बैठो यहाँ…”
मेरे ही घर में ये मुझे बैठने को कह रहा था. मैं बैठ गया…
“जरा देखो अपनी ओर… खा-पी के कैसे मोटे हो गए हो…”
“क्या तुम मुझे एक्सेरसाइझ की प्रोडक्ट बेचने आये हो ? देखो, वो सारे प्रोडक्ट्स बेकार होते हैं…”
“पहले पूरी बात सुन लो, फिर बोलना…” उसने जोर देते हुए कहा.
“ये सारा सुख तुम्हे मोटा बना रहा हैं. क्या कहते हो तुम लोग ? वर्क हार्ड एंड पार्टी हार्ड… ना ?”
“देखो ये मेरा निजी मामला हैं… मैं कितना खाता हूँ, क्या पीता हूँ, उससे तुम्हे क्या ?”
” हेल्लो! तुम्हारा नीजी मामला? क्या तुम नही जानते दुनिया में कितने लोग खाली पेट सोते हैं ?”
“अब ये लेक्चर किस लिए दे रहे हो ? एक तो मेरा संडे खराब किया, उपरसे… और मैं भी क्यूँ तुम्हारी फिजूल की बाते सुनु? तुम होते कौन हो ?” मेरा पेशंस खत्म हो रहा था…
“वही तो…चलो अब बताही देता हूँ कि मैं कौन हूँ…”
“मैं हूँ एक फ़रिश्ता, जो तुम्हारे जीवन को संजीवनी देने आया हैं” उसने बड़े नाज़ से कहा.
मैंने उसके इर्द-गिर्द देखा, मुझे तो कोई प्रकाश नजर नहीं आया. फरिश्तों के आस पास कोई आभा होती हैं ऐसा मैंने सुना था.