नामुमकिन
तुम कहती हो तो
भुला देता हू तुम्हे
और मिटा देता हू
सारी रोशनी जो
तुम ने मुझे दी
उन पन्नो के भी
कर देता हू टुकड़े
जिन पे तुमने लिखे
कितने सारे अल्फ़ाज़
भावना से ओतप्रोत
कर देता हू मेरा
आखरी प्रणाम
उस डूबते हुए सूरज को
जिसका रक्तिम रंग
तुम पहनती थी रोज़
जब हम मिलते थे
तुम भी सोच लेना
उन फूलोंका क्या करोगे
जो मैने तुम्हे दिए
पंखुड़िया बिखेर कर
किताबो में रखोगे?
या फिर उन्हे पखेरोगे
पानी की लहरो पर
कालीन की तरह
चलो मिटा देते हैं
हर निशान को
जिस पे हमारा
नाम लिखा था
लेकिन उन यादो का
क्या करेंगे हम
जो उभरके आएगी
गीले ज़ख़्म की तरह
इतना भी बता देना
तुम कहती हो तो
भुला देता हू तुम्हे
और मिटा देता हू
सारी रोशनी जो
तुम ने मुझे दी
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लाईफ है….
ढील दो, ढील दो
लाइफ को थोडा फील दो
खीचना तन के, निकल न जाए
फिसल न जाये धागा
ढील दो, ढील दो
लाइफ को थोडा फील दो
झोके आये जाए कितने
तेज़ हवा की छोडो फ़िक्र
लहराने दो, बलखाने दो
झूम ने दो इठलाकर
पकडे रहना, जकडे रहना
रंगबिरंगी उसका छोर
ढील दो, ढील दो
लाइफ को थोडा फील दो
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असलियत
माना मय हैं बुरी
पर इसका साथ हैं प्यारा
यही हैं दुखियों का सहारा
जब जी करे महफ़िल सजाती
रोज नये जलवे दिखाती
हर बूंद में हैं हंसी नजारा
इसके अंग में हूर का शबाब
सपने दिखाए बेहिसाब
लुटाये खुशीका खजाना
यारों एक बार लुत्फ़ उठाओ
इसकी चाह को गले लगाओ
गम न छुएगा दोबारा
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ये रात…
हटो, यूँ न सताओ, सोने दो आज तो
दिए बुझ गये, चाँद भी सोया
जिद न करो आधी रात को
मै रहूँ प्यासा तुम न चाहोगी
तन का सैलाब यूँ न रोकोगी
जाने ना दो, रोक लो रात को
प्यास तुम्हारी लौ दिए की
बुझे, फिर जले, जलती रहेगी
रोक लों लहर, सुबह है होने को
हावी है पल का तकाजा
चाहत का लम्हा सजा जा
बेबस हूँ, देखो मुझ को
हटो, यूँ न सताओ सोने दो आज तो
दिए बुझ गये, चाँद भी सोया
जिद न करो आधी रात को
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रुक जाना…
बादलों जरा धीरे चलो
बरसात है आने को
रुक जाना वहीं जहाँ हो
सावन है आने को
पवन से कह दूंगा
न करे तुम से छेड़खानी
अंग लग कर बार-बार
हसाए, करे गुदगुदी
थम जाना एक जगह
रोको अपने आप को
सावन है आने को…
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सब कूछ. बस तुम नही होफूलों में मुस्कुराहट
किताब पे दस्तखत
तुम्हारी चुडीया
आईने पे चिपका लाल टीका
कॉफी मग पे लिपस्टिक के निशान
सब कूछ
मैने वैसे ही सम्हाल के रखा हैं ये सब
मानो मेरा अस्तित्व निर्भर करता हो
या तुम ऐसे ही देखना चाहोगे उन्हें
कुछ निशाँ मिट गये तो क्या
वाकिफ बनो हर अजनबी मुकाम से
वक्त तो लगता है नयाँ जहां बसाने में…
तबियत से लिखो दिल का अफ़साना
स्याही में गाढा दर्द मिलाना
अंगारेसी दहक हो, हर अल्फाज में…
वक्त तो लगता है नयाँ जहां बसाने में…
यादों का बनादो गुलदस्ता
महक जिसकी न मुरझाये
सम्हाल कर रखो हर पल
कली नई खिलेगी आशियानेमे…
वक्त तो लगता है नयाँ जहां बसाने में…
सुबह
तुम्हारी आहट से जाग जाता हैं शहर मुस्कान में तेरी भरा हैं शहद
फुलोंसे ज्यादा तुममें मासूमियत
गालों पे गुला खिलते हैं अक्सरतुम्हारी आहट से जाग जाता हैं शहर
हाल उनका औरों को क्या पता
तुम्हे देखने की जिनसे हुई कहता
ऐसे मरीज पे दवा बेअसर
तुम्हारी आहट से जाग जाता हैं शहर
इंतज़ार
मैने कब कहा मुझे
बहारो से प्यार हैं
तुम यूही समझ बैठी
मुझे सुबह का इंतज़ार हैं
खंडहरो मे देखी
हरियाली की निशानी
धूप मे नज़र आई
सतरंगी कमान सुहानी
गले लगाकर दुख को
मैने अपनाया हैं
तुम यूही समझ बैठी
मुझे सुबह का इंतज़ार हैं
सेहरा मे नही होती
रेषाओ की रचना?
सूखे फूलों मे नही देखी
तरल, मृदु भावना?
निशब्द स्याही रात को
बदन पर ओढ़ा हें
तुम यूही समझ बैठी
मुझे सुबह का इंतज़ार हैं
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